Gulzar Poems | Gulzar Poetry in Hindi
बिना बताए चले जाते हो
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Gulzar Poetry in Hindi
कई बार देखा है मैंने
लोगों को बेचते हुए
बिकते हुए
हर बार उम्मीदें टूट जाती है
ज़िन्दगी के इस बाजार में
वैसे तो हर कोई
गिन तोलकर ही देता है, लेता है
पर हर बार कुछ यादें छूट जाती है
ज़िन्दगी के इस बाजार में
वैसे तो हर कोई
गिन तोलकर ही देता है, लेता है
पर हर बार कुछ यादें छूट जाती है
ज़िन्दगी के इस बाजार में
कुछ सालों बाद पता चलता है
आज भी बाजार वैसे ही चल रहा है
और हम भी औरों की तरह भागते रहे
ज़िन्दगी के इस बाजार में..!!
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Gulzar Poetry on Love
बोलो क्या तुम बस इतना सा
मेरा काम करोगे
मेरे जिस्म पे ऊँगली से
अपना नाम लिखोगे
आंखों से पढ़ पढ़ के
मेरे जिस्म पे लिखते रहना
साँस बजे गर ज़ोर से तो
आवाज निगलते रहना
हल्की हल्की आंच पे बोलो
ढेर सारा प्यार करोगे
हाथों के पोरों से
जब ही तुम मेहसुस कराओ
वहां वहां तुम होठों की
एक मोहर लगाते जाओ
इतना ही चुपचाप बताओ
कितना प्यार करोगे
Gulzar Poems in Hindi
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Gulzar Sahab Poetry
बिना बताए चले जाते हो
जाके बताऊँ कैसा लगता है?
चलते चलते मेरा साया
कभी कभी यूँ करता है
ज़मीन से उठकर, सामने आकर
हाथ पकड़ कर कहता है
अबकी बार में आगे आगे चलता हूँ
और तू मेरा पीछा करके
देख जरा क्या होता है?
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Gulzar Halal
ये कैसी उम्र में आकर मिली हो तुम?
बहुत जी चाहता है…फिर से बो दूँ अपनी आँखें
तुम्हारे ढेर सारे चेहरे उगाऊ..और बुलाऊ बारिशों को
बहुत जी है की फुर्सत हो… तसब्बुर हो
तसब्बुर में थोड़ी बागवानी हो
मगर जाना
एक ऐसी उम्र में आकर मिली हो तुम
किसी के हिस्से की मिटटी नहीं हिलती
किसी के धुप का हिस्सा नहीं चनता
मगर क्या क्यारी के पौधे पास अपने
अब किसी को पाँव रखने के लिए भी थाह नहीं देते
ये कैसी उम्र में आकर मिली हो तुम?
Gulzar Poems on Love
काश ज़िन्दगी सचमुच किताब होती
पढ़ सकता मैं की आगे क्या होगा?
क्या पाउगा मैं और क्या दिल खोएगा
कब थोड़ी ख़ुशी मिलेगी कब दिल रोयेगा?
काश ज़िन्दगी सचमुच किताब होती
फाड़ सकता मैं उन लम्हों को
जिन्होंने मुझे रुलाया है…
जोड़ता कुछ पन्ने जिनकी
यादों ने मुझे हंसाया है…
हिसाब तो लगा पाता कितना
खोया और कितना पाया है?
काश ज़िन्दगी सचमुच किताब होती
वक़्त से आँखे चुराकर पीछे चला जाता
टूटे सपनो को फिर से अरमानो से सजाता
कुछ पल के लिए मैं भी मुस्कुराता
काश, ज़िन्दगी सचमुच किताब होती
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